गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

वो सुहाने दिन[कहानी][Part-5(अंतिम भाग)]

वो सुहाने दिन

[गतांक से आगे]

वातावरण का माहौल बहुत बोझिल हो चुका था। आखिर वातावरण के सन्नाटे को चीरते हुए मैने ही बात शुरु की - "तो फ़िर क्या सोचा तुमने? अगर तुम अपने घरवालो से बात करोगी तो क्या वो मान ज़ायेंगे?"
"वो कभी नही मानेंगे।"
"तो फ़िर"
"एक ही रास्ता है"
"क्या"
"घर से भागने का"
"इसके अलावा "
"मुझे भूल ज़ाओ"
"तुम भूल सकती हो"
" तो तुम कुछ करते क्यों नही"
"मुझे कुछ समझ नही आ रहा"
फ़िर हमारे बीच एक सन्नाटा पसर गया। बोले भी तो क्या? कुछ भी समझ मे नही आ रहा था।
"तुम अपने घरवालो से बात करो ज़ो होगा देखा ज़ायेगा।"
इसके आगे मैने कुछ नही कहा।
ज़ब उसके घरवालो को ये पता चला तो उसके घर मे कोहराम मच गया। उसका घर से निकलना बंद हो चुका था। उसके घरवालो ने उसका रिश्ता कहीं और तय कर दिया था। मैने उससे मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन नही मिल पाया। और एक दिन जो मुझे पता चला उससे मेरे पैरो तले की ज़मीन खिसक गई। पुष्पा ने सुसाइड कर लिया था। सुसाइड नोट मे उसने यही लिखा था कि उसके घरवाले उसकी शादी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ कहीं और कर रहे है इसलिये उसने ये कदम उठाया। मेरी तो दुनिया ही वीरान हो गई थी। इसके लिये कहीं ना कहीं तो मै भी ज़िम्मेदार था। अगर मै उसकी बात मान लेता तो शायद ये घटना ना होती। लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। अब मेरे पास पछतावे के सिवाय कुछ नही था।

काश मैने उसकी बात मान ली होती तो शायद, शायद,……………………………………………………… …………… बस आगे कुछ कहा नही जाता।
[ समाप्त ]

-अंकित
गुरूवार, 07/10/2010

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