रविवार, 20 नवंबर 2011

स्वीटी… (सिर्फ यादें )


स्वीटी…

जब इस दिल के किसी कोने में तुम्हारी याद का दिया ज़गमगाता है, तो मेरा पूरा वजूद बस तुम पर सिमट कर रह जाता है । देखता हूं तो तुम्हारा चेहरा, सोचता हूं तो तुम्हारी बातें । तुम्हारी याद एक धुंधली सी तस्वीर से शुरु होती है । उसी चेहरे की तस्वीर, जिसे पहली बार इन निंगाहों ने देखा था और उम्र भर के लिये अपने दिल मे कैद कर लिया था । वही तस्वीर, जिसका ख्याल तक अगर दिल में आ जायें, तो हाथ खुद-ब-खुद दिल को सम्भालने के लिये उठ जाते है । या फ़िर यूं कहो कि……

तेरा दीदार करते ही रब का ख्याल आया ॥
अब ना कोई हसरत बाकी रही दिल में ॥

कैसे कोई इंसान सिर्फ़ यादों के सहारे सारी उम्र गुजार सकता है । यकीन नही होता ना । मुझे भी नही होता था । लेकिन अब सोचता हूं कि कितना गलत था मै । यादें बहुत खूबसूरत होती है । तो क्या उनके साथ ज़िंदगी नही बितायी जा सकती ।

ज़िंदगी तो तभी ज़ी चुके हम ॥
जब नज़र भर के देखा था उन्होने ॥

अब तो बस जी रहे है, यूं ही । शायद कभी उन्हे अहसास हो हमारे दीवानेपन का । और वो लौट आए हमारी बांहों में । खुदा जाने क्या लिखा है हमारी किस्मत में, उनका दीदार या फ़िर इन्तज़ार, इन्तज़ार और सिर्फ़ इन्तज़ार…………।
अब इस दिल का हाल ना पूछो, मुझसे कुछ कहा नही जाता । आखिर क्यों होता है ऐसा ? क्यों कोई दिल में इस तरह से समा जाता है कि किसी और के लिये जगह ही नही बचती । क्यों उसकी यादों को सीने से लगाए बैठा हूं मै, ये जानते हुए भी कि इस राख के ढेर में कुछ भी नही मिलने वाला । लेकिन क्या सिर्फ़ किसी को हासिल कर लेने को ही प्यार कहते हैं । प्यार तो दिल मे होता हैं और उसे दिखावे की जरूरत नही । ये जानते हुए भी, कि वो कभी लौट कर नही आयेगी, मैने उसे जाने दिया । और शायद ही अब कभी उससे मुलाकात हो ।

ना जाने अब उनसे मुलाकात कब होगी ॥
निकल पडे है हम भी अजनबी राहों पर ॥

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