कयामत के दिन नज़दीक है शायद ।
कातिलों की जुबां पे मेरा नाम आ गया ॥
यादों ने मेरी तकल्लुफ़ किया होगा उन्हे ।
एक खत आज फ़िर बेनाम आ गया ॥
जाने कितने दिन की बची है ज़िन्दगी ।
आज फ़िर मौत का पैगाम आ गया ॥
जीना तो भूल गये थे उनकी जुदाई से ।
आज शायद आखिरी अंजाम आ गया ॥
खंज़र जो चुभाया उसने मेरे सीने मे ।
दर्द -ए-दिल को मेरे भी आराम आ गया ॥
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