मंगलवार, 25 सितंबर 2012

आख़िरी पैगाम


यामत के दिन नज़दीक है शायद
कातिलों की जुबां पे मेरा नाम गया
यादों ने मेरी तकल्लुफ़ किया होगा उन्हे
एक खत आज फ़िर बेनाम गया
जाने कितने दिन की बची है ज़िन्दगी
आज फ़िर मौत का पैगाम गया
जीना तो भूल गये थे उनकी जुदाई से
आज शायद आखिरी अंजाम गया
खंज़र जो चुभाया उसने मेरे सीने मे
दर्द --दिल को मेरे भी आराम गया

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