शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

प्रेम-पत्र -3

पलक,
        आजकल मेरा मन बहुत अधिक विचलित रहने लगा है । तुम्हारे-मेरे बीच मे जो ये दूरी है, मै इसे मिटा देना चाहता हूं । तुमसे मिलने की तृष्णा राई से पहाड बन चुकी है । पल-प्रतिपल तुम्हारे विषय में विचार करके मेरे अन्तर्मन की क्लान्तता बढती जा रही है । वास्तव में ही इंसान बहुत बेबस और निर्बल होता है । शायद मै भी उसी अवस्था में हूं । मै अपने स्वयं के विचारों को नियंत्रित नही कर पा रहा हूं । कभी-कभी इच्छा होती है कि तुम मेरे निकट, इतने निकट आ जाओ कि ये दुनिया हम दोनों तक ही सिमट जाए या फ़िर हम दोनों इस जहां से इतनी दूर चले जाए जहां परिंदे भी पर ना मार सके ।
        मै तुम्हे किसी बंधन में नही रखना चाहता हूं। मै तो उस अदृश्य बंधन की कल्पना कर रहा हूं जो हमे परस्पर बांधे रखे, तुम चाहकर भी मुझसे दूर ना जा सको । मै जानता हूं कि तुम्हारी बेचैनी भी कम नही है। तुम्हारे मन मे भी मुझसे मिलने की वही तडप, वही कशिश मौज़ूद है, जो मेरे दिल मे, है । मुझे उस क्षण की प्रतीक्षा है जब समय भी हमारे बीच मे दूरी नही बना पाएगा ।

………प्रतीक्षारत
तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा 'नक्षत्र'

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