मेरे हाथों मे जो तेरा हाथ आ गया ,
जाने कैसा सुरूर इस दिल पे छा गया ।
तमन्ना थी जाने की बहुत दूर लेकिन ,
लौटकर मै वापस तेरे दर पे आ गया ।
इंतेहां जो आज तूने की मौहब्बत की ,
इक अज़नबी अहसास मेरे दिल मे समा गया ।
नही छू पाया कोई मेरे दिल के तार, मगर
पल भर मे ही तू मुझे अपना बना गया ।
सदियों से थी अंधेरी गलियां मेरे दिल की ,
तू आज़ अमावस रात में दिवाली मना गया ।
ना आते थे परिंदे भी चौखट पे मेरी,
तू फ़िर से मेरा उज़डा हुआ जहां बसा गया ।
-अंकित कुमार 'नक्षत्र'
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