तमन्ना नही अब किसी और मूरत की मुझे ।
एक तू ही काफ़ी है मंदिर मे सज़ाने के लिए ॥
जमाने भर को हमसे नफ़रत है, तो क्या गम है ।
एक तू ही काफ़ी है मुझे मौहब्बत सिखाने के लिए ॥
[
Tamanna nahi ab kisi aur moorat ki mujhe.
ek tu hi kafi hai mandir me sajane ke liye.
jamane bhar ko humse nafrat hai, to kya gum hai.
ek tu hi kafi hai mujhe mohabbat sikhane ke liye.
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शनिवार, 23 मार्च 2013
कभी लडखडा जाते थे
कभी लडखडा जाते थे सीढिया चढ़ते हुए
काँपे नहीं कदम आज मौत की तरफ बढ़ते हुए
-अंकित कुमार 'नक्षत्र' [ 'अंत एक दीवाने का 'से साभार ]
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