सैंकड़ो तुफानो के मध्य घिरी जिंदगी
दो दिशाए मिली
एक मस्तिष्क से और
दूजी ह्रदय से।
प्रथम कहता
छोड़ दे मोह
सब व्यर्थ है
कुछ भी प्राप्त नही होगा
दूजा कहता
क्या कुछ पाना ही जिंदगी है
अनमोल प्रेम का कोई मोल नही।
किन्तु
परन्तु
मस्तिष्क पर भारी पड़ रहा मन
हावी हुए हृदय के विचार
और जिंदगी दौड़ चली
प्रेम के पीछे
जहा
कुछ मिले या न मिले
प्रेम की लौ तो जलेगी
छोड़ दिया सब कुछ इसके लिए।
मन दौड़ चला
दिल मचल उठा
उसके लिए
व उसे बताने को
सब संभव प्रयास करूँगा अब
चाहे कितनी कठिनाई हो
उसे अपना बनाना है
उसे दिल से अपनाना है।
उसकी आँखों के सूनेपन में
फिर से एक बार
प्रेम की लौ देखनी है
टुटा था जो विश्वास
उसे जीवित कराना है
उसे दिल से मानना है।
-अंकित
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