गुरुवार, 13 नवंबर 2014

मस्तिष्क और हृदय के मध्य द्वंद



सैंकड़ो तुफानो के मध्य घिरी जिंदगी 
दो  दिशाए मिली 
एक मस्तिष्क से और 
दूजी  ह्रदय से। 

प्रथम कहता 
छोड़ दे मोह 
सब व्यर्थ  है 
कुछ भी प्राप्त नही होगा 
दूजा कहता 
क्या कुछ पाना ही जिंदगी है 
अनमोल प्रेम का कोई मोल नही। 

किन्तु 
परन्तु 
मस्तिष्क पर भारी पड़ रहा मन 
हावी हुए हृदय के विचार 
और जिंदगी दौड़ चली 
प्रेम के पीछे 
जहा 
कुछ मिले या न मिले 
 प्रेम की लौ तो जलेगी 
छोड़  दिया सब कुछ  इसके लिए। 


मन दौड़ चला 
दिल  मचल उठा 
उसके लिए
व  उसे बताने को 
सब संभव प्रयास करूँगा अब 
चाहे कितनी कठिनाई हो 
उसे अपना बनाना है 
उसे दिल से अपनाना है। 

उसकी आँखों के सूनेपन में 
फिर से एक बार 
प्रेम की लौ देखनी है 
टुटा था जो विश्वास 
उसे जीवित कराना है 
उसे दिल से मानना है। 

-अंकित 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें